
वक़्फ़ ज़मीन अधिग्रहण पर कौशांबी में APCR की तहक़ीक़ात
वक़्फ़ ज़मीन अधिग्रहण पर कौशांबी में APCR की तहक़ीक़ात
वक़्फ़ बिल के पास होने के तुरंत बाद कौशांबी ज़िले से ख़बर आई कि सरकार नेģ वक़्फ़ की 98 बीघा ज़मीन का अधिग्रहण कर लिया है। इसके बाद एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) की कौशांबी टीम ने घटनास्थल का दौरा कर ज़मीन की स्थिति और स्थानीय लोगों से जानकारी प्राप्त की।
वक़्फ़ संपत्ति संख्या 112, जो कि “क़ब्रिस्तान ख़्वाजा कड़क शाह” के नाम से मशहूर है, ज़िला कौशांबी के कड़ा क्षेत्र में स्थित है। यह ज़मीन उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड में दर्ज है और कुल रक़बा 116.8 बीघा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह ज़मीन जिला प्रशासन ने उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर अपने क़ब्ज़े में ले ली है।
APCR की तहक़ीक़ी टीम, ज़िला कॉर्डिनेटर क़लीम अहमद सिद्दीकी की अगुआई में, इस स्थान पर पहुँची। टीम में मुहम्मद हमज़ा और मुहम्मद साक़िब भी शामिल थे। उन्होंने ख़्वाजा कड़क शाह अब्दाल के नाम से मशहूर सय्यद मारूफ़ अहमद अलैहिर्रहमा की दरगाह का दौरा किया, जो इसी वक़्फ़ ज़मीन पर स्थित है और लोगों के लिए रूहानी और तारीखी एहमियत रखती है।
टीम ने दरगाह के मुन्तज़िम मुंशी असदुल्लाह से मुलाक़ात की, जो पिछले 35 साल से सेवा कर रहे हैं और पूर्व में लेखपाल रह चुके हैं। दरगाह के मुजावर शौकत ने बताया कि हर साल यहाँ उर्स मनाया जाता है और हाल ही में 729वां उर्स आयोजित हुआ, जिससे दरगाह की 729 साल पुरानी तारीख़ सामने आती है।
टीम ने पास की मस्जिद में सरताज ख़ान उर्फ लल्लू भाई से भी मुलाक़ात की, जिनके पूर्वज पिछले 100 वर्षों से इस वक़्फ़ ज़मीन पर रह रहे हैं।
मौजूदा मुतवल्ली शाह सय्यद वाली अशरफ़ ने बताया कि 1979 में चकबंदी के दौरान सर्किल अफ़सर ने ज़मीन को वक़्फ़ घोषित किया था, लेकिन बाद में डिप्टी डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन (DDC) ने उस आदेश को रद्द कर दिया।
इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट मे एक मुक़दमा भी दर्ज है, जिसकी सुनवाई नहीं हो पा रही है।
यह वक़्फ़ ज़मीन 1985-86 में रिकॉर्ड में दर्ज हुई थी और तब से इसका मामला क़ानूनी लड़ाई में है। मरहूम नियाज़ अशरफ़ ने इसके लिए 45 साल तक संघर्ष किया और अब उनके बेटे वाली अशरफ़ हाई कोर्ट में इस मामले के याचिकाकर्ता हैं।
APCR की टीम ने मुतावल्ली और स्थानीय लोगों को हर मुम्किन क़ानूनी मदद का भरोसा दिया।